मधुमिता के बाद
एक और को
इन्साफ मिला,
एक और राजनितिक चरित्र
जड़ से हिला,
पिता को कहाँ सुकून था,
दंड की आस थी सालों से
फांसी का जूनून था,
जूनून भूलो,
अपनी नब्ज टटोलो,
हो सके तो
कुछ और गहरे जाओ,
तराजू में
अपराध तो तुल गया,
अपना हृदय भी तोलो,
मधुमिता
राजनिति के मंच पर
कविताये पढ़ती थी,
कविताये
यदि,
स्वान्तः सुखाय होती,
और प्राप्य
वाह-वाही तक होता,
तो ठीक होता ,
वो नहीं रुकी,
एक साथ कई सीढ़िया चढी,
छोटा रास्ता,
दिलचस्प होता है
किसे अच्छा नहीं लगता,
भले ,
कितना भी गिरने का डर हो,
मधुमिता,
जल्दबाजी मैं थी,
समाप्त होती सीढ़ी भी चढ़ गयी,
आसमान से सीधे
जमीन पर गिर गयी
मणि कहा पकड़ने वाला था ,
धक्का भी नहीं दिया उसने ,
बस रास्ता दिखाकर
सीढ़ी हटवा दी,.
शशि भी
मंच पर चढी,
वो भी खासी जल्दी में थी,
भूल गयी ,
राजनिति,मात्र शास्त्र ही नहीं है
शस्त्र भी है,
और इसमें नहीं होते कोई रिश्ते,
होते भी है तो
खेल कर फेंक दिए जाते हैं,
धर्म,ईमान,मूल्य, संस्कार,
राजनीति नहीं पढाती ,
मगर,
शशि के जन्म और
परवरिश का जिम्मा उठाने वाले,
संस्कार और परम्पराओ के देश के है ना !
फिर क्यों ?
मूल्य और संस्कार नहीं समझ पाए,
तुम्हारे दुःख से
बहुत दुखी हुए,
मै भी,
मै भी,
राजनीति के कारावास से
सुखी भी सब हुए,
मै भी ,
काश:
मै भी ,
काश:
तुम्हारी भूल की
कोई तो माफी होती ,
और इतने वर्ष
और इतने वर्ष
तुमने काटी जो सजा,
शायद न काटी होती
शायद न काटी होती
सब तुम्हे कर भी दे माफ़ ,
तुम्हारी बेटियां
कर पाएंगी क्या ,
कर पाती तो
तुम्हारी बेटियां
कर पाएंगी क्या ,
कर पाती तो
मधुमिता, शशि ही नहीं,
कई बेटियां
इस मरीचिका से बच पातीं ,
इस मरीचिका से बच पातीं ,
और एक इस बार ही सही ,
राजनीति
कलंकित होने से बच जाती.
-कुश्वंश
राजनिति,मात्र शास्त्र ही नहीं है
जवाब देंहटाएंशस्त्र भी है,
और इसमें नहीं होते कोई रिश्ते,
per tumhen maafi mil jaye , yah ek chaah hoti hai jo waqt per andhi ho jati hai
बेहद मार्मिक्।
जवाब देंहटाएंराजनितिएमात्र शास्त्र ही नहीं है
जवाब देंहटाएंशस्त्र भी है,
और इसमें नहीं होते कोई रिश्ते,
होते भी है तो
खेल कर फेंक दिए जाते हैं,
धर्म,ईमान,मूल्य, संस्कार,
राजनीति नहीं पढाती
राजनीति को शस्त्र की उचित संज्ञा दी है आपने।
कविता के भाव बहुत संवेदनापूर्ण हैं।
बहुत ही हृदयस्पर्शी ... आपकी यह कविता भी लाजवाब है...
जवाब देंहटाएंह्रदय के गहनतम भावों की अभिव्यक्ति......
जवाब देंहटाएंगहरी वेदना है आपकी कविता में.
जवाब देंहटाएंगहन चिन्तन के लिए बधाई।
इस तरह से इस विषय को देख और कह पाने का साहस सबमे नहीं होता...
जवाब देंहटाएंइस साहस और प्रासंगिक प्रसंग को इतनी सार्थकता से उठाने के लिए आपका साधुवाद....
गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है इसे...
मधुमिता, शशि ही नहीं,
जवाब देंहटाएंकई बेटियां
इस मरीचिका से बच पातीं ,
और एक इस बार ही सही ,
राजनीति
कलंकित होने से बच जाती.
बेटियों के प्रति समर्पित कविता....
निःशब्द कर दिया है मुझे....आभार ....
बहुत ही गहन विश्लेष्णात्मक प्रस्तुति। काश कोई तो माफ़ी होती । विचार करने को बाध्य करती उम्दा रचना।
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