महेश कुशवंश

14 मई 2011

पारिवारिक दिवस की बधाई ..







घंटी बजी,
बेटी  का फ़ोन था,
माँ मुझे अच्छा नहीं लग रहा 
तुम्हारे पास आना चाहती  हूँ,  
बहुत दिन हो गए
तुमे देखे,
इस बीराने देश में 
कोई तो नहीं अपना ,
रात के दस बज  रहे है 
श्रेय अभी  नहीं आये,
अक्सर देर से आते है,  
मै तो आठ बजे आ गयी थी  
माँ..  
घुटनों चलने लगा है ईश , 
आया ने बताया,
... आ जाओ नीरू 
तेरा ही घर है ,
लेकिन पापा टूर  पे जा रहे है
तीस दिन बाद लौटेंगे,  
मै फोरेन आगंतुकों में व्यस्त हूँ,
इन दिनों विदेशी ज्यादा आते है, 
माँ..  
भाभी तो रहेंगी ना, 
बेटा तुम्हे नहीं बताया  क्या ?
रश्मि के क्लायंट के लिए 
ये घर छोटा था,  
उसे साथ ही  फ्लैट में  
चौथे माले पर शिफ्ट होना पड़ा,  
चाहती तो रह सकती थी साथ
नहीं रही
तुम्हारा भाई भी बदल गया है 
एकदिन भी नहीं रुका 
अब तो कभी कभी ही आते है , 
माँ ..
दादी तो होंगी ना..
अरे बेटा  
दादी बहुत बीमार पड़ी थी,  
कौन करता 
कुल्हे की हद्द्दी जो टूट गयी थी,  
बिस्तर पे थी 
ओल्ड एज होम में  शिफ्ट कर दी,  
एक नर्स  के साथ  
कल ही  देख आयी हूँ   
अब ठीक है,  
माँ ..
नानी से मिलना है 
वही हो आऊंगी ..
बेटी ..
छोटे मामा-मामी में कुछ प्रॉब्लम है  
वो सालभर से नहीं आयी,  
मायके में है  
बड़ी मामी का  हेमोग्लोबिन कम है ,
नानी की तबियत ठीक नहीं रहती,  
नाना खाना बनाते है, 
वहI कुछ भी ठीक  नहीं है ,
माँ ..
चलो बुआ के यहाँ हो आएंगे,  
बुआ ..
उनका तो फ़ोन ही नहीं आया
पिछले छह महीने से ,
तुम्हारे भाई की   शादी से नाराज है शायद
उचित महत्व नहीं मिला
या फिर कुछ और .. पता नहीं , 
माँ तो मै क्या करू 
कहा जाऊ..  
माँ ..
मै बोर हो गयी हूँ 
क्या करू ,
बेटी ..
फेशबुक  पर तो मिले  थे कल,   
चल वेबकैम आन कर 
ईश को दिखा, 
मैंने तो उसे देखा भी नहीं..
बेटी ने फ़ोन बंद कर दिया
माँ किटी पार्टी में चली गयी..
पार्टी का थीम है
बहुमूल्य पारंपरिक पारिवारिक मूल्य
क्या हो गया ?

हमारे पारिवारिक मूल्यों का ,
कहा गयी हमारी
गर्व करने वाली संस्कृति ,
दुनिया भर में संबंधो का
डंका बजाने वाली संस्कृति ,
मानसिक असंतुलन,
उतरोत्तर आत्महत्याएं
एकल जीवन को प्रेरित करती
अतिवादी,
उपभोक्तावादी संस्कृति,
...............
हां
अंतररास्ट्रीय पारिवारिक दिवस की बधाई ..
बहुत.. बहुत.. बधाई 


-कुश्वंश






10 टिप्‍पणियां:

  1. आज के दिन आपने हमारी सच्चाई बता दी की हम कितने संवेदनहीन है

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  2. माँ तो मै क्या करू
    कहा जाऊ..
    क्या हो गया
    हमारे पारिवारिक मूल्यों का
    कहा गयी हमारी
    गर्व करने वाली संस्कृति
    दुनिया भर में संबंधो का
    डंका बजाने वाली संस्कृति ...

    बहुत ही मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...आज हम सब अपने अपने जीवन की दौड की आपाधापी में अपने निकट के संबंधों को भी भूलते जा रहे है..रचना की अंतिम पंक्तियों ने आँखों को नाम कर दिया.

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  3. सच्चाई बयाँ करती अच्छी रचना ...खत्म हो रहे हैं पारिवारिक मूल्य ...

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  4. खत्म होते मूल्यों को दिखाती सुंदर भावमयी रचना
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  5. मर्मस्पर्शी रचना ......खामोश कर गयी .....आभार !

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  6. बहुत बढ़िया ...कुछ बातें ज़िन्दगी से निकलकर पार्टियों की थीम्स में ही रह गयी हैं.....शुभकामनायें

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  7. kya baat hai....
    bahut sunder
    apne aapme bada sandesh chhodti ek khat jaisi kavita........

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  8. माँ तो मै क्या करू
    कहा जाऊ..
    क्या हो गया ....bahut hi dard jhalak raha hai is bhaw se..kabhi kabhi aesa hota hai jab chah ke bhi apne maa ke paas nhi ja pate hai..bahut sari musikile paresaniya hoti hai...man hota hai hai ki maa ke god me sar rakh ke lete rahe hum or maa balo me ungaliya firati rahe...magr afshosh...kabhi waqt badla nazr aata hai to kabhi apne.....badhai...behad khubsurat rachna....

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  9. माँ तो मै क्या करू
    कहा जाऊ..
    क्या हो गया
    हमारे पारिवारिक मूल्यों का
    कहा गयी हमारी
    गर्व करने वाली संस्कृति
    दुनिया भर में संबंधो का
    डंका बजाने वाली संस्कृति ...

    भावमय करते शब्‍द हैं इन पंक्तियों के ... बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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