पहली बार
जब चले थे नन्हे पावछलछला गयी थी
जिसकी आंखे
और मुह पर रखकर हाथ
मुह फेर लिया थे उसने
लाडले को खुद की नज़र से
महफूज़ रखने को
और घंटो
आँचल में चिपकाये रही थी
पिताजी ने जब
हवा में उछाला था
मै स्थिति से अनजान
खिलखिला रहा था
और उसका कलेजा
मुह को आ रहा था
अनजाने भय से
गुडिया छीनने को
जब मैंने भरपूर काटा था
पडोस की मुन्नी को
माँ ने मुन्नी की माँ को कही का नहीं छोड़ा था
तब भी मै छिपा था पीछे
और माँ ढाल बन के खड़ी थी
कितने ही बार
रिजल्ट पर
पिताजी की कोप से
सिर्फ माँ ही बचा सकती थी
न जाने कितनी नौकरिया
नहीं करने दी माँ ने
आँखों से दूर न करने की
जिद कैरियर से बड़ी जो थी
शादी में कुए की जगत पे बैठ कर
बहु के लिए धमकी देती माँ
न जाने कब असुरक्षा से घिर गयी
न जाने कब उसे लगा
उसका बेटा छीन रहा है कोई
बट रहा है उसका बेटा
माँ ,
दौड़कर वो काम भी कर देती
जो दरवाजे की ओट खड़ीदौड़कर वो काम भी कर देती
संगिनी करने को होती
और माँ इस जीत से
प्रसन्न हो लेती थी..शायद ?
और संगिनी
अद्रश्य हार से आक्रोशित,
इसी रस्साकशी में
संगिनी के आक्रोश प्रदर्शन से
माँ और भी शशंकित हो जाती
संगिनी और आशंकित
फिर एक नन्हे की आगत ने
माँ को फिर मुझ से मिला दिया
माँ फिर बुरी नज़रों से बचाने के लिए
लगाने लगी नज्रौटे
छुपाने लगी आँचल मेंगलतियो पर फिर डालने लगी परदे
संगिनी खुश थी
सम्मिलित परिवार का मूल्य जानकर
नन्हा माँ के साथ ज्यादा
संगिनी के संग कम
एक बार फिर मै बड़ा हुआ
माँ का घेरा और भी बढा
संगिनी को फिर सताने लगी असुरक्षा
स्वयं के अंश के लिए
फिर रस्साकशी
अचानक माँ चल दी
सुरछित सफ़र की ओर
संगिनी फिर भी
असुरक्षा से बेहाल
शादी के कितने दिन बाद लौट रहा था नन्हा
हनीमून से
मगर फ़ोन बजा
माँ
घर नहीं लौट पाउँगा
कम्पनी ने छुट्टियाँ रद्द कर दी
तुम्हारी बहु साथ ही रहेगी
संगिनी जो ठहरी
सारा दोष किसका था
उस माँ का,
इस माँ का
संगिनी का
किसका और कैसा है
ये दर्द
वास्तविक , अवास्तविक
मगर दर्द तो दर्द ही है
और ऐसा दर्द
जिसका कोई हल नहीं
शायद ....
-कुश्वंश
कितना
जवाब देंहटाएंवास्तविक या अवास्तविक
मगर दर्द तो दर्द ही है
और ऐसा दर्द जिसका कोई हल नहीं
शायद ....
सटीक लिखा है ....सुन्दर भावमयी रचना
अशुराक्छा --- असुरक्षा कर लें
बिल्कुल सही कहा।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (9-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
bahut acchi rachna lagi ..
जवाब देंहटाएंmarmik kavita man ko chhute bhav achhe lage ,sache
जवाब देंहटाएंlage .
Jeevan gaatha likh di aapne ... bahut khoob ...
जवाब देंहटाएंमार्मिक मन को छूते भाव, सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंमाँ का कोई मुकाबला नहीं , वे जीवित अवतार है .....शुभकामनायें आपको !!
जवाब देंहटाएंकिसका और कैसा है
जवाब देंहटाएंये दर्द
वास्तविक , अवास्तविक
मगर दर्द तो दर्द ही है
और ऐसा दर्द
जिसका कोई हल नहीं
शायद ....
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना जो आज के यथार्थ को भी अपने में संजोये है...अहसास अंतस को छू गये..
ज्यों आपने शूक्ष्म विवेचना की है...एकदम निःशब्द कर दिया...
जवाब देंहटाएंप्रशंसा को शब्द कहाँ से लाऊं ,समझ नहीं पा रही...
मर्मस्पर्शी,अद्वितीय रचना...वाह !!!
आह -एक नग्न सत्य,विचारों की गहन अभिव्यक्ति ,बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंमगर दर्द तो दर्द ही है
जवाब देंहटाएंऔर ऐसा दर्द जिसका कोई हल नहीं
शायद ....
Excellent creation !...Beautifully described emotions.
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