महेश कुशवंश

8 मई 2011

दर्द ही है

पहली बार
जब चले थे नन्हे पाव
छलछला गयी थी
जिसकी आंखे
और मुह पर रखकर हाथ
मुह फेर लिया थे उसने
लाडले को खुद की नज़र से
महफूज़ रखने को 
और घंटो
आँचल में चिपकाये रही थी 
पिताजी ने  जब
हवा में उछाला था
मै स्थिति से  अनजान 
खिलखिला रहा था 
और उसका कलेजा
मुह को आ रहा था 
अनजाने भय से 
गुडिया छीनने को 
जब मैंने भरपूर काटा था 
पडोस की मुन्नी को 
माँ ने मुन्नी की माँ को  कही का नहीं छोड़ा था 
तब भी मै छिपा था  पीछे
और माँ ढाल बन के खड़ी थी 
कितने ही बार
रिजल्ट पर 
पिताजी की कोप से 
सिर्फ माँ ही बचा सकती थी 
न जाने कितनी नौकरिया
नहीं करने दी माँ ने 
आँखों से दूर न करने की
जिद  कैरियर से बड़ी जो थी
शादी में कुए की  जगत पे बैठ कर
बहु के लिए धमकी देती माँ
न जाने कब असुरक्षा से घिर गयी
न जाने कब उसे लगा
उसका बेटा छीन रहा है कोई
बट रहा है उसका बेटा
माँ ,
दौड़कर  वो काम भी  कर देती
जो  दरवाजे की ओट खड़ी
संगिनी करने को  होती
और माँ  इस  जीत से
प्रसन्न   हो लेती थी..शायद ?
और संगिनी
अद्रश्य हार से  आक्रोशित,
इसी रस्साकशी में
संगिनी के आक्रोश प्रदर्शन से
माँ और भी शशंकित हो  जाती  
संगिनी और आशंकित
फिर
एक नन्हे की आगत ने 
माँ को फिर मुझ से  मिला दिया
माँ फिर बुरी नज़रों से बचाने  के लिए
लगाने लगी नज्रौटे 
छुपाने लगी  आँचल में
गलतियो पर फिर डालने लगी परदे
संगिनी खुश थी
सम्मिलित परिवार का मूल्य जानकर
नन्हा माँ के साथ ज्यादा
संगिनी के संग कम
एक बार फिर मै बड़ा हुआ 
माँ का घेरा और भी बढा
संगिनी को फिर सताने लगी  असुरक्षा
स्वयं के अंश के लिए 
फिर रस्साकशी 
अचानक माँ  चल दी
सुरछित  सफ़र की ओर
संगिनी  फिर भी
असुरक्षा से बेहाल
शादी के कितने दिन बाद लौट रहा था नन्हा  
हनीमून  से
मगर फ़ोन बजा
माँ
घर नहीं लौट पाउँगा
कम्पनी ने छुट्टियाँ रद्द कर दी
तुम्हारी बहु साथ ही रहेगी
संगिनी जो ठहरी
सारा  दोष किसका था
उस माँ का,
इस माँ का 
संगिनी का 
किसका और कैसा है
ये दर्द
वास्तविक , अवास्तविक  
मगर दर्द तो दर्द ही है
और ऐसा दर्द
जिसका कोई हल नहीं 
शायद ....

-कुश्वंश


13 टिप्‍पणियां:

  1. कितना
    वास्तविक या अवास्तविक
    मगर दर्द तो दर्द ही है
    और ऐसा दर्द जिसका कोई हल नहीं
    शायद ....


    सटीक लिखा है ....सुन्दर भावमयी रचना
    अशुराक्छा --- असुरक्षा कर लें

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  2. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (9-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  3. marmik kavita man ko chhute bhav achhe lage ,sache
    lage .

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  4. मार्मिक मन को छूते भाव, सुंदर कविता.

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  5. माँ का कोई मुकाबला नहीं , वे जीवित अवतार है .....शुभकामनायें आपको !!

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  6. किसका और कैसा है
    ये दर्द
    वास्तविक , अवास्तविक
    मगर दर्द तो दर्द ही है
    और ऐसा दर्द
    जिसका कोई हल नहीं
    शायद ....

    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना जो आज के यथार्थ को भी अपने में संजोये है...अहसास अंतस को छू गये..

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  7. ज्यों आपने शूक्ष्म विवेचना की है...एकदम निःशब्द कर दिया...

    प्रशंसा को शब्द कहाँ से लाऊं ,समझ नहीं पा रही...

    मर्मस्पर्शी,अद्वितीय रचना...वाह !!!

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  8. आह -एक नग्न सत्य,विचारों की गहन अभिव्यक्ति ,बधाई

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  9. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना

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  10. मगर दर्द तो दर्द ही है
    और ऐसा दर्द जिसका कोई हल नहीं
    शायद ....

    Excellent creation !...Beautifully described emotions.

    .

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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