जैसे आयी
वैसे ही
हो गयी होली,
रंग ने बिखेरे
कई रंग,
हवाओं ने
ढेर सारी उमंग,
फिजाओं ने खोली जब
खिड़की आपदाओं की,
सहम गयी पुरवाई
फागुनी हवाओं की,
हमने जो बनाये थे
अपने आकाश,
हम पर ही बरसे
बनकर कुछ ख़ास ,
कुदरत के त्रिनेत्र
दिशाओं में उभरे,
करिश्मे जो देखे ना थे
हवाओं मैं बिखरे,
दिशाओं में उभरे,
करिश्मे जो देखे ना थे
हवाओं मैं बिखरे,
गंभीर शांतदूत ने
ली जब करवट,
टूट गए
सब बन्ध
सब बन्ध
सारे तट,
पानी में
फ़ैल गयी
धुएं की आग,
धुएं की आग,
प्रकृति ने गुनगुनाया
धीरे से फाग,
धीरे से फाग,
विज्ञानं जब-जब
होता है लाचार
उठने लगते हैं
जेहन में
अनगिनित सवाल
कौन है जिसे
समझ कर भी नहीं समझे पाए
न हम, न तुम, न आप..
काश समझ पाते ...?
न हम, न तुम, न आप..
काश समझ पाते ...?
-कुश्वंश
विज्ञानं जब-जब भी
जवाब देंहटाएंहुआ है लाचार
उठने लगते हैं
जेहन में
अनगिनित सवाल
कौन है जिसे
समझ कर भी नहीं समझे पाए
हम, तुम और आप
काश समझ पाते ...?
जानते हैं पर समझते नहीं
विज्ञानं जब-जब भी
जवाब देंहटाएंहुआ है लाचार
उठने लगते हैं
जेहन में
अनगिनित सवाल
कौन है जिसे
समझ कर भी नहीं समझे पाए
हम, तुम और आप
काश समझ पाते ...?
उसकी सत्ता को कौन नहीं जनता....
bahut badiya,
जवाब देंहटाएंsundar rachna
विज्ञानं जब-जब
जवाब देंहटाएंहोता है लाचार
उठने लगते हैं
जेहन में
अनगिनित सवाल
कौन है जिसे
समझ कर भी नहीं समझे पाए
न हम, न तुम, न आप..
काश समझ पाते ...? mumkin hota jo samajhna , kalam khamosh rahti n
उठने लगते हैं
जवाब देंहटाएंजेहन में
अनगिनित सवाल
कौन है जिसे
समझ कर भी नहीं समझे पाए
न हम, न तुम, न आप..
काश समझ पाते ...?
सुंदर रचना के लिए साधुवाद!
न समझने का तो मात्र एक बहाना है
जवाब देंहटाएंकौन है जिसने उसे अभी तक नहीं पहचाना है
ज़र्रा ज़र्रा जिसके कहर से है थर्रा रहा ,
फिर भी अभिमान ने उसे कहाँ माना है ।
'' kash samajh pate...? '' arth-gambhirya dharan kiye huye achhee kavita hai. hardik badhai! laxmi kant.
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