महेश कुशवंश

18 मार्च 2011

फिर होली आयी

रेत सा
सूखा था मन
खेत सा
बंजर था तन
बैठ गए थे  सपने  सारे
कोने छिपके
सिमटे, सिकुड़े,
खुशियों की नज़रों से बचके
सात समुन्दर पार जा बसे
अपने थे जो
शायद अपने
अब तो धूमिल

मिलन की आस
हृदय जा बिधी
वफ़ा की फांश
उगने लगी कोपलें फिर से
कोमल निर्झर
ओस बिंदु सी
शीतल निर्मल
बुझी-बुझी सी
योवन की चिंगारी ने
फिर से क्यों
ले ली अंगडाई
मन को रंगने
तन को रंगने
क्यों ?
ये कैसी
फिर होली आयी

-kushwansh

( होली के रंग आप सब के दिलों में
खुशियों के रंग भर दें इन्ही शुभकामनाओ
सहित आपका कुश्वंश)  

 

11 टिप्‍पणियां:

  1. अतिसुंदर रंगमयी रसपूर्ण रचना.होली के शुभावसर पर हार्दिक शुभ कामनाएँ.

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  2. holi to kai rang liye aati hai , jab jo rang bha jaye , per rangon ko thukrana nahi hai... shubhkamnayen

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  3. बेहद भावमयी रचना।होली की हार्दिक शुभकामनायें।

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  4. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (19.03.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

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  5. बहुत बढ़िया ..... .भावपूर्ण प्रश्न .....होली की हार्दिक शुभकामनायें

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  6. बेहद भावमयी रचना। होली की हार्दिक शुभकामनायें।

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  7. आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें।

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  8. भावमय करते शब्‍द ...होली की शुभकामनाएं ।।

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  9. बहुत भावपूर्ण रचना ....होली की शुभकामनाएँ

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  10. ये फागुन का मस्त महीना है

    सुरक्षित , शांतिपूर्ण और प्यार तथा उमंग में डूबी हुई होली की सतरंगी शुभकामनायें ।

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  11. होली की हार्दिक शुभकामनायें !

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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