मै देख रहा हूँ
उस घर में इतना
सन्नाटा क्यों है
कल तक जहा
गूंजती थी किलकारिया
आसमानी ठहाके
आज सब मौन क्यों है
घर से पहले
वो लड़की निकली
उसमे आज वो
बात नहीं थी
जिसे मै उसे जाते हुए देखता था
फिर निकले उसके पिता
रोज की तरह
बस चाल लडखडा रही थी
पैर पड़ रहे थे इधर उधर
फिर निकला
वो लड़का
आज उसमे भी वो दबंगई नहीं दिखी
रह गयी घर में
अकेली माँ
वो नहीं निकली
शाम को
घर में आते कोई नहीं दिखा
शायद देर रात आये होंगे
और जल्दी ही बंद हो गयी बत्ती
कई हफ्ते हो गए
न सुनायी दिए ठहाके
और न ही
फुसफुसाने की ही आवाज
और फिर
एक जीप रुकी
पुलिस की थी शायद
घर से फिर भी कोई नहीं निकला
बस जीप में
वो लड़की थी और उसकी अटैची
दरोगा जी और ड्राइवर के बीच में
लाल जोड़े में
दबी बैठी थी
दुसरे दिन
मोहल्ले में सुर्खिया थी
दरोगा को भा गयी थी वो
चौथी बीवी बनाने को
उसने उसके बाप पर
बेटी की कमाई खाने का पाप मढ़ा
भाई पर ड्रग्स माफिया का
और सबसे बचाने को मांगी थी
छोटी सी कीमत
एक मेमने की जान
कोई बचा सकता है उस मेमने को
कानून तो कदापि नहीं
वो तो उसकी जेब में है
क्या आप ?
आपने जाना ही कहा
क्या हुआ उस घर में ?
और मै
मै तो जान कर भी
अपने गमले सीचता रहा
बस देखता रहा उधर
मैंने क्या , किशी ने भी
मुड कर नहीं देखा
मेमने की निरीह आँखों को
भेड़िये के खूनी दांतों को
क्या तुम देखोगे
उसे बाचाओगे तुम
..... काश बचाते
-कुश्वंश
मार्मिक रचना, सत्यता की करीब .....सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा...
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंपढकर मन उदास हो गया । यदि दुनिया भर के भाई और पिता मज़बूत बन जाएँ तो स्त्रियों को बलि का बकरा नहीं बनना पड़ेगा । लेकिन अफ़सोस तो ये है की स्त्री अपने भाई , पिता , पुत्र और संतान की रक्षा के लिए सदियों से स्वयं को आहुत करती आई है ।
मुझे अफ़सोस है उन मेमनों के लिए जिनकी खातिर एक स्त्री बिना उफ़ तक किये अपनी समस्त खुशियाँ और स्वप्न बलिदान कर देती है ।
सत्य का आइना दिखाती इस उम्दा रचना के लिए बधाई ।
.
मार्मिक ...एक सार्थक और सच को दिखाती रचना है..... बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंमार्मिक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंकड़वी सच्चाई है इस कविता में, आपकी अभिव्यक्ति को नमन करता हूँ.
जवाब देंहटाएं