महेश कुशवंश

16 फ़रवरी 2011

रेलवे बजट











अरे भाई 
धक्का क्यों मारते  हो 
वो मुझे हिकारत से देखता है
मानो कह रहा हो 
किनारे क्यों नहीं खड़ा होता  
अब भीड़ में धक्का तो लगेगा ही
मुझे तो टिकट लेना है
गाड़ी आने वाली है
अरे पकड़ो पकड़ो
कहा गया
टिकट लेने के बहाने मेरी जेब काट ले  गया
गनीमत है मेरा टिकट ऊपर की जेब में था
सामने जमीन पर पड़े है उबले आलू
सब्जी बनाएगा शायद, वो रेहड़ी वाला
पूड़ी के लिए आटा भी रखा है
ये क्या ?
बिल्ली के आकार के चूहे
उस आटे को खा रहे है
आलू को बिना सब्जी बनाये चख  रहे है
चाय वाला
रेलगाड़ी की टायलेट में भरने वाला पानी
केतली में भर लाता है
चाय के लिए
प्लेटफोर्म पर बड़ी फिसलन है
कही पानी,  तो कही सब्जी के दोने पड़े है
वो पटरियों से मिनरल वाटर की खाली बोतले
और चाय  के खाली कप  बीनता है
और फिर से भर के बेचता है पानी
कम पैसे में
तभी एक आवाज चीखती है
मेरा बैग कहा गया
रेलवे पुलिस वाले अनसुनी करके आगे चले जाते है
एक लड़की चीखती है 
बदतमीज़ चिकोटी काटता है,
माँ बहन नहीं है क्या 
और सभी जोर से हँस देते है 
और वो बहादुर पटरिया फांद कर दुसरे प्लेटफोर्म पर चला जाता है 
तभी भगदड़ मचती है
प्लेटफोर्म पर गाड़ी आ रही है 
कुली मुस्तैद है 
जनरल डिब्बे के आगे भीड़ लगी है 
पचास रुपये है डिब्बे में घुसेड़ने का रेट 
गाड़ी आते ही अफरा तफरी का माहौल है 
किसी डिब्बे में जगह नहीं 
काले कोट वाले कागज़ झांक कर कहते है 
गाड़ी चलते ही लोग डिब्बे में चढ़ जाते है
गाड़ी चली जाती है
मै नहीं चढ़ पाता
प्लेटफोर्म पर सन्नाटे में खड़ा रह जाता हू
प्लेटफोर्म का टीवी 
रेलवे  बजट सुना रहा है 
दीदी,  यात्री सुविधाओं  के जोशीले भाषण  दे रही है 
साथी मेजें  थपथपा रहे है 
मै उसी  प्लेटफोर्म पर खड़ा हूँ
कभी जाती गाड़ी को देखता हूँ
कभी अपनी कटी जेब को
कभी भाषण पड़ती दीदी को
और कभी लोकसभा को
अपने प्रजातान्त्रिक देश की लोकसभा को
देख रहा हूँ ..

-कुश्वंश 

4 टिप्‍पणियां:

  1. भारतीय रेल के माध्यम से अपने अन्दर की भडास को खूबसूरती से परिभाषित करती रचना |
    बहुत सुन्दर अंदाज़ |
    मेरी गलती सही वक़्त पर बताने का शुक्रिया दोस्त |

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  2. आपने हमारे ब्लॉग पर आकर अपनी
    बहुमूल्य टिपण्णी दर्ज की ..आपका
    अत्यंत आभार !

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  3. मै उसी प्लेटफोर्म पर खड़ा हूँ
    कभी जाती गाड़ी को देखता हूँ
    कभी अपनी कटी जेब को
    कभी भाषण पड़ती दीदी को
    और कभी लोकसभा को
    अपने प्रजातान्त्रिक देश की लोकसभा को
    देख रहा हूँ ..


    देश के हालातों को बखूबी वयां किया है आपने ...यहाँ पर तो भाषण दिए जाते हैं और तालियाँ बजाई जाती हैं ....बाकि आज तक कुछ हुआ है क्या ..तस्वीर सबके सामने हैं ....आपकी कविता बहुत मर्मस्पर्शी है ...

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  4. .

    बहुत सटीक चित्र खींचा है आपने अपने देश कि व्यवस्था पर । दिल करता है सब कुछ बदल डालूँ । कोशिश भी जारी है । अक्सर डांट देती हूँ किसी कों गन्दगी करते देखती हूँ तो । रेल में बहुत सफ़र किया है । शिक्षा के दौरान बनारस से लखनऊ बहुत आना जाना होता था । आदत से मजबूर , अनियमितता बरतने वाले किसी भी व्यक्ति कों नहीं बख्शती थी । और सामने वाले पर अनुकूल प्रभाव भी पड़ता था।

    मुझे लगता है कि यदि हम सभी अपने स्तर पर समाज सुधार कि हर छोटी-बड़ी कोशिशें करते रहे तो मनोनुकूल बदलाव ला सकते हैं।

    .

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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