महेश कुशवंश

16 फ़रवरी 2011

मेरी पहचान

मै कौन हूँ
स्वयं से पूछता हूँ एक सवाल
और  उत्तर ढूँढने को
झाकने लगता हूँ बगलें
सोचता हूँ मेरी पहचान कोई बताएगा शायद  
मेरे अंतर में चलती
गरम हवाएं
शब्द बनकर
बाहर की  शीत लहर से  
धुआं   हो जाती है
और अंतर के सारे शब्द  
इधर-उधर बिखर जाते है
और मुझे अपना ही अक्स
दिखाई नहीं देता
इसके-उसके
और ना जाने किस-किस के  पास
ढूंढता हूँ स्वयं को
किसी से याचिका की मुद्रा में
किसी से प्रार्थना की मुद्रा में
तुमने पढ़ा है क्या
मुझपर कोई टिप्पणी की है क्या
अगर नहीं तो
तुम भी कैसे  जान सकते हो मुझे
जब जान ही नहीं पाए
तो अनुसरण करने का तो सवाल ही नहीं
एक ब्लॉगर की सारी ब्लॉग्गिंग
इसी याचिका में बीत जाती है
उसे भी पढो
उसपर भी टिप्पणी करो
उसे भी अनुसरण करो
मगर मै जानता हू
इस ब्लॉगर चक्र में परिधि तोड़कर अन्दर जाना     
तुम्हारे बस की बात नहीं
सभी की होती है अपनी दुनिया
अपने-अपने  होते है आसमान
आस-पास बहने वाली हवा भी होती है उनकी अपनी  
स्वान्त सुखाय  लिखो, पढो और पढ़ाओ
अंतर-ध्वनि,  अन्दर  ही जज्ब करो 
जो मिला है वो क्या कम है
जो और की इच्छा है तुम्हे....?

-कुश्वंश

4 टिप्‍पणियां:

  1. .

    बहुत सुन्दर लगी आपकी रचना । मन में अन्दर तक भाव विभोर कर गयी । एक दुःख भी हुआ की क्यूँ देर हुई आने में । फिर मन ने ही सांत्वना दी , देर से ही सही , लेकिन देर तो नहीं हुई न ।

    .

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  2. .

    मन में एक प्रसन्नता है आपकी पहली follower बनने की । कोशिश करुँगी , नियमित रह सकूँ और आपको समझ सकूँ।

    .

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  3. ZEAL जी , अंतर मन की आवाज पहचानने की परख एक चिकित्सक में ही होती है शायद, धन्यवाद्

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  4. बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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