महेश कुशवंश

15 फ़रवरी 2011

तुम्हारे बिना


एक शहर
वीरान सा
तेज मरकरी, सूर्य की
रोशनिया फीकी
कंधे छीलती भीड़ में 
पसरा रहा  
नीरव सन्नाटा, 
सैकड़ो मील
कोई ओर-छोर नहीं जिसका
हलाहल समुद्र 
दूर तक
किनारों की आस में  
नील हुए रंग में  भी
नहीं
कोई उमंग  
तेज रफ़्तार
सडको में
फर्राटे से उड़नछू
टुकड़े
प्रेम-शब्द
रिम-झिम सावन में
पतझड़  सा
सूखा
व्याकुल मन
तुम्हारे बिना

-कुश्वंश  

6 टिप्‍पणियां:

  1. अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई

    जवाब देंहटाएं
  2. व्याकुल मन कों स्वाति बूँद शीघ्र मिले ।
    शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूबसूरत ! हृदयस्पर्शी रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह...वाह...वाह...

    शब्दों और बिम्बों का प्रयोग ऐसे किया गया है की भाव ह्रदयभूमि को प्रभावशाली ढंग से स्पर्श कर मन मोहित कर जाते हैं...

    बहुत ही सुन्दर रचना...

    जवाब देंहटाएं
  5. कोमल अहसासों से परिपूर्ण एक बहुत ही भावभीनी रचना जो मन को गहराई तक छू गयी ! बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  6. @ namaskar kushvans ji
    aapka balog pabhut hi pasand aaya samay ke abahav ke karan bahut ten char hi rachnaye padh paya hoon
    samay milne par sabhu padhunga ...........aabhar

    जवाब देंहटाएं

आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

हिंदी में