महेश कुशवंश

10 फ़रवरी 2011

सब अपने होते है......











मन में कुछ बसते है  सपने,
कुछ उनके,
कुछ केवल अपने,
कुछ कोमल
संबंधो के,
कुछ बोझिल
अनुबंधों के,
कुछ बबूल,  
कुछ रेशम रेशम,
कुछ सर्दी  से ठिठुरे- सिकुड़े,
कुछ सूरज से हुए गरम ,   
कही छंद से बिखरे-बिखरे,  
कही फूल से नरम- नरम,  
कैसे उन सपनो को समझू,
कैसे उनको अपनाऊ,
कैसे घोर अँधेरे  में
सपनो से मन बहलाऊ,
कहते है जब हद से ज्यादा
सपने,  सपनो में आये,  
छूकर उस स्पर्श-गंध से
मन को व्यापक पंख लगाये,
दूर गगन में उड़ने वाले
पंछी भी अपने होते है,
काले, उजले, रंग बिरंगे  
सपने सब अपने होते है,
सच है,
सब अपने होते है......

- कुशवंश  



2 टिप्‍पणियां:

  1. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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  2. मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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