प्रश्न है बस
प्रश्न का उत्तर नहीं
खो गया जो घर
कही वो घर नहीं
जल रही थी,
सदियों से जो
प्यार की लौ
कब बुझी,
कैसे बुझी,
क्योकर बुझी
जल रहे इस प्रश्न का
उत्तर नहीं
खांसती है
मुह दबाये
वेदना
किसको इससे है तनिक
संवेदना
तुम तो बस
प्रगति की सीढ़ी चढो
दंभ और अभिमान से
आगे बढ़ो
छूट जाने दो उन्हें
जो प्रेम भूखे
तुम रहो रेत से,
बस
सूखे-सूखे.
तुम तो बस
टकसाल में सिक्के गढ़ों
उन गढ़े सिक्को से फिर
सिक्के बनाओ
भूंख से उपजी हुयी उस भूंख को
तुम आजमाओ
भूंख फिर भी भूंख है
बढ़ जाएगी
प्रेम की भाषा समझ न आयेगी
सिक्को से संवेदना गर
तौलोगे तुम
एक दिन संवेदना मर जाएगी
-कुश्वंश
बहुत उम्दा!
जवाब देंहटाएंआज संवेदनाएं काफी हद तक मर चुकी हैं । पैसा बड़ा था ही , अब और बड़ा हो गया है , इसके आगे सब कुछ छोटा हो गया है । कविता के माध्यम से एक गंभीर चिंतन ।
जवाब देंहटाएंखांसती है
जवाब देंहटाएंमुह दबाये
वेदना...
अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई
अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं.... बहुत सुंदर कविता....
जवाब देंहटाएंकविता के माध्यम से एक गंभीर चिंतन|अतिसुन्दर भावाव्यक्ति| बधाई|
जवाब देंहटाएंदेखा था मैंने तन को नाचते
जवाब देंहटाएंमन को भी नाचते देखा था;
अब घन को नचाते देख रहा हूँ.
धन में होती शक्ति है कितनी?
यह बैठे - बैठे सोच रहा हूँ.
बड़ो -बड़ों को ताल पर इसके
झूमते थिरकते हिलते डुलते,
कमर लचकते देखा था.
अब कहे कमर की कौन?
यहाँ तो कमरा डोल रहा है.
अब कमरे तक भी रही न बात,
पूरा सांचा ही दरक रहा है....
धन का नशा अब छाने लगा है.
रिश्तों को भी ठुकराने लगा है
छोटा बड़ा यहाँ कोई नहीं है,
सबके पास जो पैसा है..
बाप जहां पर रहा न बाप
बेटा न यहाँ पर बेटा है.
धन की इस ज्वाला ने देखो
पूरा परिवार, पूरा देश लपेटा है.
बहुत गहरी बात कह दी आपने। बधाई बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएं---------
ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
bahut hi gahan abhivayakti
जवाब देंहटाएंmere blog par aapka swagat hai.
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
अपनी रूचि की बात कहूँ....मुझे अधिकांशतः मुक्त छंद की कवितायें बहुत आकर्षित नहीं कर पाती..मुझे लगता है गद्य को शब्द शब्द तोड़ तोड़ कर बात कहने से अच्छा है कि सीधे गद्य में ही बात कह दी जाए...पर आपकी रचना पढ़ लगा कि रचना यदि ऐसी हो तो फिर क्या बात हो...
जवाब देंहटाएंमेरी इच्छा हो रही है कि आपकी यह रचना उन सबको उदहारण स्वरुप पढवाऊं जिन्हें लगता है अकविता,नव कविता, मुक्त कविता के नाम पर वे कुछ भी लिख सकते हैं...लय,प्रवाह निर्वाह करने की उनकी कोई प्रतिबद्धता नहीं...
रचना में भाव और शब्द का आपने जिस प्रकार संयोजन किया है...मन आह्लादित हो गया पढ़कर...
बहुत बहुत आभार आपका इस सुन्दर रचना को पढने का सुअवसर देने के लिए...
सिक्को से संवेदना गर
जवाब देंहटाएंतौलोगे तुम
एक दिन संवेदना मर जाएगी
बहुत असरदार रचना
आपकी टिप्पणियों ने भाव विभोर कर दिया , सुनील जी, संजय जी, डा. तिवारी जी, रजनीश जी, अजय जी आभार, डा. दिव्या जी हौश्लाफ्जायी का बेहद शुक्रगुजार , रंजना जी हमारे शब्द आपके विस्वाश में खरे उतरे धन्यवाद् आपके शब्द हमारी कवितायों के लिए उत्प्रेरक साबित होंगे पुनः आभार
जवाब देंहटाएंएक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंभूंख फिर भी भूंख है
जवाब देंहटाएंबढ़ जाएगी
प्रेम की भाषा समझ न आयेगी
सिक्को से संवेदना गर
तौलोगे तुम
एक दिन संवेदना मर जाएगी
बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति..आज संवेदनशीलता रही कहाँ है..शब्दों और भावों का बहुत सुन्दर संयोजन..