महेश कुशवंश

8 फ़रवरी 2011

अंतर आकाश

जाने कितने पंछी उड़ते
इस  अंतर आकाश में,
कुछ काले
कुछ नीले-पीले,
कुछ जीने की आस में,
मर मर के कुछ हुए दीवाने,
कुछ  जीते परिहास में, 
कुछ उनकी चर्चा बन बैठे,
कुछ पहुचे इतिहास में,
मुझे नहीं यू, घुट कर जीना
अश्रु नहीं है, मुझको पीना,
मुझे बदलना है भूगोल,
घुटे,  शब्द-अर्थो के मोल,
मै आऊंगा,  
अंतर से बाहर आऊंगा,
स्याह  क्षितिज में,
रंग प्यार के  बिखराऊंगा,
तुम  चाहो तो उन रंगों में
मुझे देखना,
मुझे चाहना .....

-कुश्वंश


5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी लगी रचना ,छितिज़ को क्षितिज कर लीजिये ...प्यास सभी को उसी घूँट की ... ....

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  2. शारदा जी, गंभीरता से मनन के लिए धन्यवाद्,
    शब्द ठीक कर लिया है

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  3. आदरणीय कुश्वंश जी
    नमस्कार !
    शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।
    कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

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  4. पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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