हम आपके साथ
बहुत दूर तलक जायेगे
आप निभा पाए साथ
तो निभायेगे
छोड़ ही देंगे साथ उनका,
हमारी उम्मीदों पे जो मुस्कुरयेगे
देखते है कब और कहा
छोड़ देती है उम्मीद,
हमारी राहों को
हम तो सहते है,
रात-दिन काटो का सफ़र
देखते है वो और
कितने दिन सह पाएंगे,
कल मेरे घर के
हट गए सारे परदे,
दरवाजे और चौखट भी ...
सीसे के घर अब उनकी नजरो से
और कितना छिपेगे
देख ही लेंगे वे, और
पकड कर साथ ले जायेगे
काट देंगे हाथ हमारे ही
जो अस्मिता बचायेगे
सुनने को चीख, हमारी ही
कोई नहीं होगा
और ना ही होंगे अपने ही कान
हे इश्वर
क्यों दिया तुमने, ये.... मुझे..?
दिया था तो उसे बचाने की ताकत देता
नहीं दी तो,
इन ठूठ से बीरान बन में ,
रिस्तो की परिभाषा देता
कम से कम
आदमी को आदमी तो पहचानता
.. हम नहीं मांगते तुमसे कुछ भी
क्यों मांगे,
तुम्हारे पास होगा ही नहीं कुछ देने को
इस युग को सब कुछ तो दे दिया तुमने
अगर होगा भी तो
तुम ही ना हो शायद उस जगह
जहा हम ढूंढते है तुम्हे..
क्योकि ऐसी जगह तुम होते नहीं हो
शायद ही होते हो ...
-कुश्वंश
बहुत सुन्दर शब्द चुने आपने कविताओं के लिए..
जवाब देंहटाएंसुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं.
जवाब देंहटाएंआपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.