महेश कुशवंश

3 फ़रवरी 2011

रक्त-अश्रु रोना पड़ता है











कुछ बाते करने का मन है
कुछ बाते सुनने का मन है
कुछ मन की
कुछ अंतर्मन की
रेगिस्तानी इस  जीवन की
बाते ही होती परिभाषा.
कितनी भी घर आये दिलासा,
शब्द बांध कर
चुप हो जाये
कितनी भी सुन्दर अभिलाषा
मन को कुछ खोना पड़ता है
तन को चुप होना पड़ता है
बदन, झुर्रीया , स्वप्न हवाए
बिखरी-बिखरी
हृदयी  किरचे
शब्द हो गए भ्रमित सफ़र
बर्फ हो रहे रिस्तो के घर 
रक्त  अश्रु  रोना पड़ता है
कुछ है जो खोना पड़ता है
इधर-उधर नजरो की कनखी
होंठ, गाल, पलकों की सुर्खी
सुगंध-गंध के भ्रम बंधन में  
बाँझ बीज बोना पड़ता है
कभी-कभी की बात नहीं है

रोजाना रोना पड़ता है
अक्सर ही रोना पड़ता है.........

-कुश्वंश

2 टिप्‍पणियां:

  1. रक्त अश्रु रोना पड़ता है
    रोजाना रोना पड़ता है
    अक्सर ही रोना पड़ता है..

    बहुत मार्मिक लिखा भाई

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  2. मार्मिक रचना ,शब्द नहीं हैं कहने के लिए

    जवाब देंहटाएं

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-कुश्वंश

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