महेश कुशवंश

28 जनवरी 2011

जागने का वक्त है














जागो,
जागने का वक्त है,
देश को बचाना है तुम्हे,
जिनके सहारे छोड़ा था,
वो खा गए, भूखे जो थे,
भूखे तो तुम भी हो,
लेकिन भूख से बचो,
भूख हमें कही का नहीं रहने देती,
अपनों की रोटी छीनने को कर देती है विवश,
इस भूख को ये भी नहीं याद रहता
की हमारी भूंख,
उनकी अस्मिता छीन लेगी,
तार तार कर देगी, उनके जिस्म के सारे वस्त्र,
उनके ही नहीं,
हम भी नहीं ढूंढ़ पाएंगे
तन ढकने को कपडे,
इस लिए भूख से बचो,
तुम्हे बहुत काम करने है,
रिस्तो को जीना सिखाना है,
पारिवारिक रक्त कणिकाए उत्पन्न करनी है,
लाल और सफ़ेद रक्त कणिकाओ के अलावा,
जिससे हम सब पहचान सके
इंसानी परिवार.
और इस देश को ही नहीं इस भूमि को भी बना सके,
सबके लिए.
भूखो  के लिये कोई जगह नहीं होती,
ना यहाँ,
ना वहा.
जागो तुम्हे बहुत काम करने है,
भूंख से संघर्ष करना है,
कठिन है,
मगर दम लगा के करना है
दम रहने तक.

- कुश्वंश


1 टिप्पणी:

  1. जागो तुम्हे बहुत काम करने है,
    भूंख से संघर्ष करना है,
    कठिन है,
    मगर दम लगा के करना है
    दम रहने तक.

    -बहुत सही!

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-कुश्वंश

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