महेश कुशवंश

29 जनवरी 2011

बापू .. मुझे मत देखो यू












बापू..!
कहा हो तुम,
तुमने तो कहा था,
हरदम हमारे साथ रहोगे
हम  चारो  तरफ ढूंढते है तुम्हे
तुम कही नहीं दिखते,
तुम्हार चरखा कोई नहीं कातता,
तुम्हारा चस्मा वो नहीं दिखाता
जो हम देखना चाहते है,
तुम्हारी घडी रुक गयी है
वही 1948 में के ठीक 5.15 बजे
अब नहीं बजते तुम्हारे भजन 
वैष्णव जन, इश्वर, अल्लाह. 
बस तुम्हारा
हे राम...
गूंज रहा है चारो तरफ,
अर्थ बदल बदल कर.
बापू .. सच बताओ
तुमने कल्पना की थी क्या.?
हमारे...... ऐसे हो जाने की,
जैसे हम आज हुए है
और होते जा रहे है,
तुम्हारे जाने के पल
 हम मौन भी रहेगे,
तुम्हे श्रधांजलि भी देंगे,
मगर नहीं देंगे तुम्हे भरोसा,
तुम्हारे राम राज्य का
जिसका सपना तुमने देखा था,
बापू..
तुम सपने में जियो,
हम अपने सपनो  को रंग चढाते  है,
और इस रंगीन हो गयी दुनिया में  
तुम्हारे सफ़ेद रंग में
मिलाते है एक रंग,
अंग्रेजो वाला
लाल-लाल, रक्त सा रंग
शायद तुम्हारी क़ुरबानी याद आ जाये सब को
शायद...शायद...

- कुश्वंश



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