महेश कुशवंश

31 जनवरी 2011

मन करता है

पलकों में
संचित कुछ सपने
आज समर्पित कर लेने दो
मन करता है
मखमल मखमल,
स्वप्न हवाए
रेशम धागे ,
केश घटाए,
उमड़ घुमड़ कर
प्रेम फुहारे 
झर लेने दो
मन करता है,
आस-प्यास से व्याकुल पंछी
पंख उठाये 
दूर चाँद  का सफ़र  
मयस्सर कर लेने दो
मन करता है

-कुश्वंश
 (चित्र साभार)

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-कुश्वंश

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