दलित चेतना कैसी
बुधवा की बेटी के पसीने से
गोबर की बू निकल गयी क्या
या लम्बरदार ने
उसके तार-तार कुरते में
कुत्ते की नज़र से नहीं झाँका
बटाई का एक तिहाई
उसका भी आधा
उसे बिना लात घूसे मिल गया क्या
बड़का के ढोर को पानी पिलाने कौन ले गया
रधिया काम से बिना नुचे लौट आई
फुलवा का प्रसव ब्लेड से नहीं जाना गया क्या
घसीटे खेत पर बैल सा नहीं जुता क्या
खुदाबकास ने घास नहीं छोली क्या
मिठ्ठू ने ठाकुर साहब के पैर नहीं दबाये
दरवाजे पर हुक्का किसने भरा
नन्हे ने मरे बैल की खाल नहीं उतारी क्या
दुधिया मैला धोने से बच गयी क्या.
दलित चेतना मात्र प्रश्न नहीं है
ना ही अनवरत चिंतन से मस्तिस्क झकझोरने की कला
दलित चेतना के बीज हृदय में रोंपो
फिर युग बदलो
और जब सब कुछ बदल जाये तो
ये दलित शब्द बदलो
क्योकि इसमें छिपी
बू भी निकालनी चाहिए
- कुश्वंश
बुधवा की बेटी के पसीने से
गोबर की बू निकल गयी क्या
या लम्बरदार ने
उसके तार-तार कुरते में
कुत्ते की नज़र से नहीं झाँका
बटाई का एक तिहाई
उसका भी आधा
उसे बिना लात घूसे मिल गया क्या
बड़का के ढोर को पानी पिलाने कौन ले गया
रधिया काम से बिना नुचे लौट आई
फुलवा का प्रसव ब्लेड से नहीं जाना गया क्या
घसीटे खेत पर बैल सा नहीं जुता क्या
खुदाबकास ने घास नहीं छोली क्या
मिठ्ठू ने ठाकुर साहब के पैर नहीं दबाये
दरवाजे पर हुक्का किसने भरा
नन्हे ने मरे बैल की खाल नहीं उतारी क्या
दुधिया मैला धोने से बच गयी क्या.
दलित चेतना मात्र प्रश्न नहीं है
ना ही अनवरत चिंतन से मस्तिस्क झकझोरने की कला
दलित चेतना के बीज हृदय में रोंपो
फिर युग बदलो
और जब सब कुछ बदल जाये तो
ये दलित शब्द बदलो
क्योकि इसमें छिपी
बू भी निकालनी चाहिए
- कुश्वंश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश