महेश कुशवंश

3 अक्तूबर 2010

दलित चेतना

एक दलित  चेतना के सवर्ण कवि
महान दलित कवि बन बैठे
मर्यादा पुरुषोत्तम राम पर    
लगभग  चिंघाड़ते हुए
शम्बूक बध को,  अपनी पुरुषोत्तमी भाषा में
अनैतिक करार देते हुए 
दलित चेतना पुरुस्कार से सम्मनित हो जाते है
मूर्ति पूजा को आडम्बर कहते हुए,
धार्मिक कर्मकांडों  पर
युग बदलने वाले साहित्य लिखने का आवाहन करके
खूब वाहवाही लूटते है
युग परिवर्तन का आवाहन कर डालते है
और बार बार टटोलते है कंधे पर इधर उधर
चम याचना की मुद्रा में  
ऐसे जैसे कोई मंदिर की सीढियो को स्पर्श करे छिपकर

-महेश कुश्वंश

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-कुश्वंश

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