एक दलित चेतना के सवर्ण कवि
महान दलित कवि बन बैठे
मर्यादा पुरुषोत्तम राम पर
लगभग चिंघाड़ते हुए
शम्बूक बध को, अपनी पुरुषोत्तमी भाषा में
अनैतिक करार देते हुए
दलित चेतना पुरुस्कार से सम्मनित हो जाते है
मूर्ति पूजा को आडम्बर कहते हुए,
धार्मिक कर्मकांडों पर
युग बदलने वाले साहित्य लिखने का आवाहन करके
खूब वाहवाही लूटते है
युग परिवर्तन का आवाहन कर डालते है
और बार बार टटोलते है कंधे पर इधर उधर
चम याचना की मुद्रा में
ऐसे जैसे कोई मंदिर की सीढियो को स्पर्श करे छिपकर
-महेश कुश्वंश
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-कुश्वंश