महेश कुशवंश

3 अक्तूबर 2010

दिल की मानते काश

कौन कहता है
मन नहीं कहता कुछ भी
कहता है सिर्फ दिल
और दिल की मानने में सदियों गुजर जाती है
ऐसा क्यों होता है
मन और दिल एक क्यों नहीं होते
एक होते तो बदल जाते इतिहास
प्रेम के गीत
प्रेम की परिभाषा
चुभन की फांस
दर्द के नगमे
फ़ैल जाते जमी से आसमा
तक प्रेम के गीत
दिल को छूने वाले, सतरंगी संसार दिखाने वाले
और करने वाले पहचान,
पलकों की झपकान की,
दोनों आँखों के झुकन की,
दिल के धक्-धक् धड़कन की,
झंकृत करने वाले संगीत की,
मगर दिल की मानते तो
आप भी, हम भी ओर वो भी

- महेश कुश्वंश

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-कुश्वंश

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