महेश कुशवंश

31 मार्च 2016

रेशमी एहसास



धीरे धीरे वो 
कुछ इतने करीब  आए 
कानों मे जैसे कोई लय गुनगुनाए 
फासले मिटने लगे 
कलियों के  खिलने की तरह
धुप्प अंधेरी रात जैसे 
दूधिया रोशनी मे नहाये
सोचता हू तुझको तो 
धड़कनें गिन लेता हूँ 
बिखरे हुये बाल जैसे 
सुबह की शबनम मे नहाये 
घुली जाती है महक 
यहाँ वहाँ हिना सी हवा 
चेहरे पर मेरे, तुम्हारा  दुपट्टा 
चिपका  जाये 
प्रेम का तूफान कहीं दूर है 
बस आने को है 
बेनाम सुनामी को कहाँ 
तटबंध से  रोका जाये 
ऐसा मखमली एहसास 
न देखा 
न महसूस किया 
सौन्दर्य बंधा बांध , 
लबालब है , 
बस टूटा जाये 
सपने होते है बस रेशमी 
कुन्दन कुन्दन 
इस एहसास को अब 
ऐसे ही जिया जाये 

-कुशवंश




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