आओ माँ इन गलियों में
भक्तों का उद्धार करो
भटक गए जो पथ से बंदे
उनका बेड़ा पार करो
अन्तर्मन मे चलता है कुछ
बाहर मन करता कुछ और
चंचल मन उड़ता फिरता है
असंतोष का भीषण दौर
रिस्ते-नाते गौण हुये सब
शोहरत , पैसा हुआ प्रबल
जी लों जितना जी पाओ तुम
कब, किसने देखा है कल
समवेदनाएं सूख गयीं सब
रहा न आँखों मे पानी
वृद्धा आश्रम चले गए सब
दादा दादी , नाना नानी
कहाँ गयीं वो गालियां, गाँव
कहाँ गए सब लोक व्योहार
घर घर मे खुशिया बिखराते
कहाँ गए सब तीज त्योहार
सूने है सब खेत खलिहान
सूने हैं चौपाल , मकान
शहरों की झोपड़पट्टी मे
सिसक रही गावों की जान
कैसा देश बनाया हमने
अपने भाई बहन भूले
प्रगति दौड़ मे हिली जा रहीं
सम्बन्धों की सारी चूलें
माँ इन नवरात्री मे तुम
सबसे एक शपथ लेना
मानव बनकर भक्त जीए सब
ऐसा आशीर्वाद देना ......
- कुशवंश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश