महेश कुशवंश

8 अप्रैल 2016

आओ माँ इन गलियों में



आओ माँ इन गलियों में
भक्तों का उद्धार करो 
भटक गए जो पथ से बंदे 
उनका बेड़ा पार करो
अन्तर्मन मे चलता है कुछ 
बाहर मन करता कुछ और 
चंचल मन उड़ता फिरता है 
असंतोष का भीषण दौर
रिस्ते-नाते गौण हुये सब
शोहरत , पैसा हुआ प्रबल 
जी लों जितना जी पाओ तुम  
कब,  किसने देखा है कल
समवेदनाएं सूख गयीं सब 
रहा न आँखों मे पानी 
वृद्धा आश्रम चले गए सब 
दादा दादी , नाना नानी 
कहाँ गयीं वो गालियां, गाँव
कहाँ गए सब लोक व्योहार 
घर घर मे खुशिया बिखराते  
कहाँ गए सब तीज त्योहार
सूने है  सब  खेत खलिहान 
सूने हैं  चौपाल , मकान 
शहरों की झोपड़पट्टी मे 
सिसक रही गावों की जान 
कैसा देश बनाया हमने 
अपने भाई बहन भूले 
प्रगति दौड़ मे हिली जा रहीं 
सम्बन्धों की सारी चूलें
माँ इन नवरात्री मे तुम 
सबसे एक शपथ लेना 
मानव बनकर भक्त जीए सब 
ऐसा आशीर्वाद देना ......

- कुशवंश





1 टिप्पणी:

  1. अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
    greetings from malaysia
    द्वारा टिप्पणी: muhammad solehuddin
    let's be friend

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-कुश्वंश

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