महेश कुशवंश

22 दिसंबर 2015

मसाल बुझा देंगे... निर्भया....



निर्भया ने 
तीन साल पहले
जिया  था  रक्त का मंजर 
चुकाया था
स्त्रीत्व होने कर्ज, और 
सहा था 
बेमानी हुये रिस्तों का दर्द 
हमने मोमबत्तियाँ जलाकर 
व्यक्त की थी अपनी मजबूरियां
और हायबरनेशन मे चले गए थे 
ये सोच कर 
कानून के रखवाले  याद रखेंगे
और कम से कम 
उस वीभत्स सोच को लगा देंगे पूर्ण विराम 
मगर हम भूल गए  तुम्हें
निर्भया 
तुम्हें याद रखा  सिर्फ 
तुम्हें जन्म देने वालों ने 
और कोई भी 
नहीं याद रख पाया 
और वो तो बिलकुल नहीं 
जिन्हें तुम्हें  याद रखना था 
हमने तो राह देखी थी अच्छे दिनों की 
एक माँ को याद आती थी 
उस मासूम की चीख..........
माँ मुझे जीना है ......का आर्तनाद 
अभी और जीना है की अभिलाषा 
पापा के अरमानों को पूरा करने की जिजीविषा
मैं मरूँगी नहीं 
मरेगा तो वो 
जिसने मेरे अन्तर्मन को मार दिया 
मगर निर्भया मर गई 
और उसे किसी और निर्भया के लिये
जिंदा रखा गया
किताब मे लिखे कानून के शब्द 
हृदय पर लिखे खून के धब्बे
का हिसाब नहीं कर पाये 
माँ रोती रही 
रोयी तो कानून की माँ भी 
मगर आँसू 
पट्टियों मे छिप गए 
और कानून की गीली पट्टियाँ 
किसी ने नहीं देखीं 
कानून बनाने वालों ने भी नहीं 
निर्भया .....!
हम आज तुम्हें भुलाते हैं 
क्यों की तुम्हें इंसाफ दिलाने में हमें 
अपनी ही सुध नहीं रही 
हम अपने को ही भूल गए 
वो मसाल जो हमने जलायी थी 
आज ......
बुझा देंगे 
क्या करें................निर्भया .......

-कुशवंश




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