महेश कुशवंश

7 अक्तूबर 2015

अस्तांचल मे गया सूरज


गमलों मे पानी देते हुये
मुझे लगा
पत्तियाँ मुझसे कुछ बोलना चाहती है
मैंने अपने कान  पास कर दिये
आवाज आई धन्यवाद
कई दिनों से प्यास लगी थी
धमनियों मे भी  रक्त संचार हो गया
मैं आभारी हूँ
आपने जरूरतें  समझी
मैंने देखा उस पेड़ मे मात्रा  कुछ पत्तियाँ ही बची थी
बाकी सब पीली होकर
गमले मे पड़ी थीं
पानी भी एक वजह हो सकती  थी
मगर गमला आद्र  था
फिर क्या वजह हो सकती थी
वहाँ वो दूर  गमलों के झुंड  मे
सभी पौधे लहलहा रहे थे
पत्तियाँ भी
हवा के झोंकों से झूम झूम जाती थी
गमले की मिट्टी भी उस सूखे  गमले से कम आद्र थी
मुझे लगा अकेलेपन का दंश
उसे पीला किए दे रहा है
मैंने उस पौधे हा स्थान बदल दिया
और उसे उनही झुंड के साथ
शामिल कर दिया
जहां पौधे गीत गा रहे थे
बिना रोजाना पानी की आस लिए
समय बीता
मैं भूल गया सारा प्रकरण
शाम का झुरमुट था
सूरज अस्तांचल की ओर था
पत्नी के साथ चाय की चुसकियों  के बीच
मुझे बच्चों  की याद आ गई
मैंने पत्नी को देखा वो
उदास थी
अनमने मन से चाय की चुसकियों मे वो बात नहीं थी
मैंने कहा चलो
बेटे के पास चलते है
बहुत दिन हो गए
पत्नी की आँखों मे चमक आ गई
अचानक  पत्नी ने  मेरा ध्यान
उस सुर्ख फूल खिले पौधे की ओर दिलाया
देखो कितना  खूबसूरत फूल है
आज ही खिला
मैंने देखा ....
अरे  ये तो वो ही पौधा है
जिसकी पत्तियों ने मुझे धन्यवाद दिया था
अपनों से साथ वो पौधा खिल गया था
अब कोई भी पत्ती
पीली होकर गमले मे नहीं पड़ी था
मिट्टी अबभी  उतनी आद्र नही थी  
जीवन मे अपनापन पौधों  को भी चाहिए  
और हमे भी
मैंने बेटे के पास जाने का प्लान बना लिया था
कल ही
पत्नी की चाय मे सौन्दर्य घुल रहा था
अस्तांचल मे गया सूरज  
लालिमा बिखेर गया था
जो मेरी पत्नी को दस साल छोटा कर गया था
मैं  बता सकता था
उसके चेहरे  की चमक देखकर


-कुशवंश 

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