महेश कुशवंश

27 अगस्त 2015

एक और अभिमन्यु


एक और अभिमन्यु

मैं
जब जन्म ले रहा था
तब एक  राजनीतिज्ञ
इस देश मे आरक्षण की एक नई पौध
रोंप रहा था
उसके बाद देश जला , मन जला
उठने लगा जलजला
और सभी इस आग मे रोटियाँ सेकने लगे
जब रोटिया सेकने वाले हाथ जलने लगे
तो इस जलन को बुझाने के लिए
आरक्षण की एक और आग जला दी गई
फिर लाठी चार्ज , आगजनी, रक्त रंजीत छुरे
रेल की पटरियाँ हुयी लहू लुहान
भूख से बिलखते रहे बच्चे
हमने जला लिये अलाव
उस अलाव मे एक और घी डाल दिया गया
मैं जन्मा
चांदी  की कटोरी मे खेला
मखमली गलींचो मे थूका
कहीं मन मे अभिमन्यु सा
चक्रव्यू , अंतर तक उतर गया
रचे गए चक्रव्यू को तोड़ने की कला
अधूरी थी
मगर , प्रारब्ध था
उसे न टलना था , न टला
मै रहा निरा नासमझ
छिपे हुये अजेंडे को बिना समझे जाने
चक्रव्यु मे जा उलझा
जो होना था , वही हुआ
मेरा हृदय ही नही
टेल  भी  राख़ हो गई
काश मैं,  प्रयोगकर्ता  का,
मन्तव्य समझ गया होता
तो मेरे अपने जलने से बच जाते
मेरा देश
एक और आग से बच जाता
शायद ?????????

-कुशवंश



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

हिंदी में