महेश कुशवंश

22 अक्तूबर 2014

दिवाली के दिये



दिवाली के दिये
निरंतर जलना होगा
फैला है तंम
फूली सम्बन्धों की दम
पोरो पोरो मे स्वांश बिन्दु बन झरना होगा
दीवाली के दिये
निरंतर जलना होगा
सुविधाओं से भरे
हृदय की
निर्मल खुशियों से परे
बाज़ार मूल्य पर वस्तुवाद
को मरना होगा
दीवाली के दिये
निरंतर जलना होगा
घोसले से मजबूर  हुये
ची ची ..... ममता   से  दूर हुये
गौरैया के घोसले को फिर  गढ़ना होगा
दीवाली के दिये
निरंतर जलना होगा
परछायी मे स्वेद बिन्दु  जो
हुये निरर्थक
तोड़ रही दम मेहनत की
परिभाषा बंधक
उन बंधन की जकड़न को
सुलझाना होगा
दीवाली के दिये
निरंतर जलना होगा
जगमग जगमग  हो जाए
सारा आकाश
हृदय के कोने कोने मे
फैले प्रकाश
सम्बन्धों की फूलझड़ी बन
चमकना होगा
दीवाली के दिये
निरंतर जलना होगा

-कुशवंश



4 टिप्‍पणियां:

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-कुश्वंश

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