महेश कुशवंश

7 अक्तूबर 2014

वापस घरों मे



क्यों रास्ते
मुझसे अभी अंजान है
दिल मे बसा 
जो शांत सा तूफान है 
कैसे सब कच्चे घरौंदे बन गए
रास्ते पत्थर के सब होते गए
मिल गए जो ख्वाब से 
खोते गए
मैंने सोचा भूल कर सब
गीत गाऊं
सूखते संबंध को 
पहचान जाऊ
बरसात मे भी अग्नि कुछ ऐसी जली
अंतर मे  बिखरी आंधिया तूफा बनी 
मन मे उठे उस ज्वार ने 
झकझोर डाला
रोशनी मे हो गया 
काला उजाला
फिर भी कही  चमका रहा जो 
इंद्रधनुष 
उससे ही ब्रांहांड़ सारा बहुत खुश 
रास्ते बनते गए 
फिर जंगलों मे 
साँझ को सब लौट आए फिर घरों मे 
वापस घरों मे 

....कुशवंश


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-कुश्वंश

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