फेंक दी
रोटियां
सड़क पर,
भूंख से मरता रहा
दिन भर
मेरा शहर,
आवाज़ है,
न चीख है,
न ही जद्दोजहद,
लाशों पे खेलने की
अब तो हो गयी है हद,
आँखें हैं ,
होंठ हैं , और
तराशा हुआ बदन,
घर में ही
दीवारों से
बरसने लगा है धन,
ले दे के कुल बचा था
मेरे घर का आइना,
मैंने ही घर में फेंके थे
पत्थर यहाँ-वहां,
रात है,
चांदनी है,
रोशनी है,
जमीन पर,
लगता है कोई और
किसी और घर में है,
मंच है,
भीड है,कसमें है,
अंगारे है,
कठपुतलियों के नाच में
मशगूल है शहर.
-कुश्वंश
लगता है कोई और
जवाब देंहटाएंकिसी और घर में है....
एकांत के भावों को उजागर करती हुई पंक्तिया...
अत्यंत लाजवाब हैं...वाकई उम्दा रचना से अवगत करने का आभार |
sab kuchh badla badla hai...afsos hai...
जवाब देंहटाएंsunder prastuti.
सार्थक व सटीक अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंहर तरफ एक सन्नाटा है ...
जवाब देंहटाएंखामोश ख़ामोशी और हम .... इस अगले काव्य संग्रह में आप आमंत्रित हैं
जवाब देंहटाएंइसमें परिचय , तस्वीर , ब्लॉग लिंक , इमेल एड्रेस , ५ से ६ रचनाएँ ---- योगदान
रश्मि rasprabha@gmail.com
har shakhsh kisi tarah waqt kaat rahaa
जवाब देंहटाएंjee kahaan rahaa ?
चुनाव का माहौल है तो यही होना है शहर दर शहर
जवाब देंहटाएंसार्थक व सटीक अभिव्यक्ति ।बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंलाजवाब हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
ले दे के कुल बचा था
जवाब देंहटाएंमेरे घर का आइना,
मैंने ही घर में फेंके थे
पत्थर यहाँ-वहां,
गजब की सच्चाई बयां करती रचना!! ला-जवाब!!
बहुत सही सर!
जवाब देंहटाएंसादर
यथार्थ और सटीक ..
जवाब देंहटाएंआवाज़ है,
जवाब देंहटाएंन चीख है,
न ही जद्दोजहद,
लाशों पे खेलने की
अब तो हो गयी है हद,
अद्भुत रचना...
नीरज
बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंकटु सत्य की भावपूर्ण प्रस्तुति...
बहुत सुन्दर शब्द रचना |
जवाब देंहटाएंफिर भी मेरे शहर का हर शख्स खामोश सा क्यूँ हैं ?
जवाब देंहटाएंइस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूँ है ! सभी अपने आप में व्यस्त हैं !
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar .....आवाज़ है,
जवाब देंहटाएंन चीख है,
न ही जद्दोजहद,
लाशों पे खेलने की
अब तो हो गयी है हद,
behad prabhavshali panktiyan ....badhai.
इन सब के पीछे कौन है ...कौन है ?
जवाब देंहटाएंये ही सवाल है अब ....????
प्रभावशाली एवं सशक्त रचना ..... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंमैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंऐसा सब कुछ क्यों है ?? इन्सान है इंसानियत गुम है...
जवाब देंहटाएंगहन भाव
har shahar ki yahi kahani...achchhi rachna, shubhkaamnaayen.
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसुरत रचना है कई पंक्तियाँ मन को छू जाती है ....पहली बार ब्लॉग पर आना हुआ,अच्छा लगा आप के ब्लॉग पर आकर....
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत कविता है |
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति, बहुत खूबशूरत रचना,बेहतरीन पोस्ट....बधाई
जवाब देंहटाएंnew post...वाह रे मंहगाई...
बहुत भावपूर्ण और मार्मिक प्रस्तुति है आपकी.
जवाब देंहटाएंगहन भाव अभिव्यक्त करती प्रस्तुति के लिए आभार.