महेश कुशवंश

18 जनवरी 2012

मेरा शहर



कल रात उसने
फेंक दी
रोटियां
सड़क पर,
भूंख से मरता रहा
दिन भर
मेरा शहर,
आवाज़ है,
न चीख है,
न ही जद्दोजहद,
लाशों पे खेलने की
अब तो हो गयी है हद,
आँखें हैं ,
होंठ हैं , और
तराशा हुआ बदन,
घर में ही
दीवारों से
बरसने लगा है धन,
ले दे के कुल बचा था
मेरे घर का आइना,
मैंने ही  घर में फेंके थे
पत्थर यहाँ-वहां,
रात है,
चांदनी है,
रोशनी है,
जमीन पर,  
लगता है कोई और  
किसी और घर में है,
मंच है,
भीड है,कसमें है,
अंगारे है,
कठपुतलियों के नाच में 
मशगूल है शहर.  


-कुश्वंश

27 टिप्‍पणियां:

  1. लगता है कोई और
    किसी और घर में है....

    एकांत के भावों को उजागर करती हुई पंक्तिया...
    अत्यंत लाजवाब हैं...वाकई उम्दा रचना से अवगत करने का आभार |

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  2. सार्थक व सटीक अभिव्‍यक्ति ।

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  3. खामोश ख़ामोशी और हम .... इस अगले काव्य संग्रह में आप आमंत्रित हैं
    इसमें परिचय , तस्वीर , ब्लॉग लिंक , इमेल एड्रेस , ५ से ६ रचनाएँ ---- योगदान
    रश्मि rasprabha@gmail.com

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  4. har shakhsh kisi tarah waqt kaat rahaa
    jee kahaan rahaa ?

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  5. चुनाव का माहौल है तो यही होना है शहर दर शहर

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  6. सार्थक व सटीक अभिव्‍यक्ति ।बहुत सुन्दर...

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  7. लाजवाब हैं.
    बहुत सुन्दर.

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  8. ले दे के कुल बचा था
    मेरे घर का आइना,
    मैंने ही घर में फेंके थे
    पत्थर यहाँ-वहां,

    गजब की सच्चाई बयां करती रचना!! ला-जवाब!!

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  9. आवाज़ है,
    न चीख है,
    न ही जद्दोजहद,
    लाशों पे खेलने की
    अब तो हो गयी है हद,

    अद्भुत रचना...

    नीरज

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  10. बहुत बढ़िया...
    कटु सत्य की भावपूर्ण प्रस्तुति...

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  11. बहुत सुन्दर शब्द रचना |

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  12. फिर भी मेरे शहर का हर शख्स खामोश सा क्यूँ हैं ?

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  13. इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूँ है ! सभी अपने आप में व्यस्त हैं !

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  14. bahut hi sundar .....आवाज़ है,
    न चीख है,
    न ही जद्दोजहद,
    लाशों पे खेलने की
    अब तो हो गयी है हद,
    behad prabhavshali panktiyan ....badhai.

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  15. इन सब के पीछे कौन है ...कौन है ?
    ये ही सवाल है अब ....????

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  16. प्रभावशाली एवं सशक्त रचना ..... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  17. मैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता

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  18. ऐसा सब कुछ क्यों है ?? इन्सान है इंसानियत गुम है...
    गहन भाव

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  19. बहुत ही खुबसुरत रचना है कई पंक्तियाँ मन को छू जाती है ....पहली बार ब्लॉग पर आना हुआ,अच्छा लगा आप के ब्लॉग पर आकर....

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  20. अच्छी प्रस्तुति, बहुत खूबशूरत रचना,बेहतरीन पोस्ट....बधाई
    new post...वाह रे मंहगाई...

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  21. बहुत भावपूर्ण और मार्मिक प्रस्तुति है आपकी.
    गहन भाव अभिव्यक्त करती प्रस्तुति के लिए आभार.

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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