कही अन्दर ही बसता है तुम्हारा दिल
जिसे तुम तलासते हो इधर उधर,
इसके उसके पास
या फिर शायद मार दिया है उसे
बिना बताये, क्योकि
तुम्हारे दबे छिपे कामों में नही रहता था शरीक,
न ही तुम्हें, कुछ अनर्गल करने से पहले, चुप रहता था
दिल तो दिल है, कैसे छोड़ सकता था अपनी जड़
जिसे तुम ना जाने कब पीछे छोड़ आए हो
बहुत पीछे
-महेश कुश्वंश
"दिल तो दिल है, कैसे छोड़ सकता था अपनी जड़
जवाब देंहटाएंजिसे तुम ना जाने कब पीछे छोड़ आए हो"
जी बिल्कुल सही "दिल" सुनते हैं पर मानता कौन है
कभी-कभी दिल भी अपनी जगह छोड़ जाता है, अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंLearn By Watch Blog
जिसे तुम ना जाने कब पीछे छोड़ आए हो, bahoot khoob
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
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