महेश कुशवंश

16 अप्रैल 2016

"अमर इस नो मोर"



दोपहर थी
लगभग तीन बजा था
मोबाइल बजा
प्रतापगढ़ वाले मामा जी थे
एक गंभीर हादसे की सूचना दे रहे थे
तेईश साल का अमर
मैसूर के पास पिकनिक मनाते हुये
नदी मे बह गया
पिता के पास एक लड़की का फोन आया
अमर  के ही  फोन से
"अमर  इस नो मोर"
ये क्या हुआ ? किसी को समझ मे नहीं आया
बड़ा भाई आनन फानन
बंगलोर से घटना स्थल पर  पहुच गया
एक छोटी सी पुलिस चौकी के पत्थर पर
पड़ा था अमर , निर्जीव
और साथ ही बैठी थी वो लड़की
जिसने कहा था "अमर इस नो मोर"
पोस्टमार्टम के बाद , कटा फटा
बिना किसी कपड़े से ढका
का साथ देने
बिना डर बैठी थी वो
बड़े जीवट की थी वो
साथ में आए सभी भाग गए थे...... किसी अनहोनी के डर से
पुलिस इंचार्ज साहब सुबह आठ बजे आए
आते ही बोले  कपड़ा लाओ
लाये हो तो , दो   सिलवा दें
या यू ही पड़ा रहने दें
जैसे तैसे पोलिथीन मिली , उसी में समेटा गया
अंबुलेंश में  लाद कर  बंगलोर एयर पोर्ट लाया गया
कैफीनवाले ने तीस हज़ार मांगे
तमाम फॉर्मैलिटीस के बाद
दिल्ली के लिए रवाना हुआ
तब तक दो दिन निकल चुके थे
अमर न देखने  लाइक बचा था
न घर मे रखने लाइक
माँ बाप को,
चेहरा न देखने को कहा गया
जिन्होंने देखा वो भी हिम्मत नहीं कर पाये देखने की सीधी आँख
गले हुये आकार रहित  अमर  को ,
सभी के आगे वो चेहरा घूम रहा था ,
 जो
अभी होली पर ही तो गया था
एक हफ्ते पहले
माँ चीख रही थी
सबको बस वही चेहरा याद था
पूरा खानदान जुड़ा था
इस संक्रमण काल मे  सभी थे हतप्रद
अचानक आई इस विपत्ति से बेहाल
उसे अग्नि को समर्पित कर दिया गया
आशू भरे आँखों मे ,  पिता ने पूंछा
आए हुये लोगों को घाट पे ही
कुछ मीठा खिलाया जाता है ना ......
मैं वहा से उठकर घर चल दिया
मुझे ये सोच भी हथौड़े सी लग रही थी ......
मेरे सीने मे धुआँ भर गया था ...............
पहले शुद्धी होगी
तेरह दिन बाद तेरहवी होगी
सारे विधि विधान से
आत्मा की शांति के लिए .....
आत्मा शांत होगी क्या
इस अकाल देहावसान ...............पर
कौन शांति देगा
पता नहीं
माँ,  पिता का  हृदय  शायद ही  शांत हो  पाये कभी
शांति की तलाश मे कितने भी करो कर्मकांड
विचलित हृदय
कैसे तलासेगा शुकून
कौन आया , कौन नहीं का हिसाब किताब रखते
दुख मैं शरीक होने आए लोग
शायद इस दुख को ,
असीम दुख को सहने के लिए
क्यों नही बनाते  कोई रीति रिवाज
कोई कर्मकांड
कुछ तो बना लेते
अमर ... तुम अमर हो
अमर ही रहोगे ...
हमारे दिलों मे.....

कुशवंश






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