धीरे धीरे वो
कुछ इतने करीब आए
कानों मे जैसे कोई लय गुनगुनाए
फासले मिटने लगे
कलियों के खिलने की तरह
धुप्प अंधेरी रात जैसे
दूधिया रोशनी मे नहाये
सोचता हू तुझको तो
धड़कनें गिन लेता हूँ
बिखरे हुये बाल जैसे
सुबह की शबनम मे नहाये
घुली जाती है महक
यहाँ वहाँ हिना सी हवा
चेहरे पर मेरे, तुम्हारा दुपट्टा
चिपका जाये
प्रेम का तूफान कहीं दूर है
बस आने को है
बेनाम सुनामी को कहाँ
तटबंध से रोका जाये
ऐसा मखमली एहसास
न देखा
न महसूस किया
सौन्दर्य बंधा बांध ,
लबालब है ,
बस टूटा जाये
सपने होते है बस रेशमी
कुन्दन कुन्दन
इस एहसास को अब
ऐसे ही जिया जाये
-कुशवंश
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