महेश कुशवंश

31 मई 2016

दिलकश नज़ारे साथ थे


उम्र के दिलकश नज़ारे 
साथ थे
जीने के अद्भुत सहारे
साथ थे 
बोलता था हृदय 
अबोला जो रहा 



एहसास के स्नेहिल किनारे 
साथ थे 
रफ्ता रफ्ता उम्र निकलती ही रही 
छिप के बैठे प्यार सारे
साथ थे 
चाँद का सौन्दर्य 
चाँदनी की कला
गुलाब के फूलों का
महका जलजला 
सुगंध योंवन के सितारे
साथ थे 
खिल गए थे फूल 
सलोने एहसास मे 
आसमा मे उड रहे थे 
प्यास मे 
बरसात की बूंदें गिरीं
भिगो दी कायनात 
छिपते छिपाते दर्द सारे 
साथ थे 
कैसे कैसे किस्से हवाओं मे हुये
एहसास के हिज्जे 
फिज़ाओ मे हुये 
सौंदर्य ने सिकुड़न लिखी जब
गाल पर 
अंतर मे , एहसास सारे
साथ थे 

-कुशवंश


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-कुश्वंश

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