महेश कुशवंश

1 नवंबर 2013

दिये जलाओ कि..


दिये जलाओ 
कि कोई तिमिर हटे 
दिल मिलाओ 
कि कोई प्यार बटे
जुगनुओं सी रोशनी भी
यहा है काफी
अंधेरा भगाओ कि
कोई धुंध छटे
टिमटिमाती रोशनी में
नहा गया है घर
खरीददारी से बहुत
बेतरतीब
भर गया है घर
स्नेह की कुछ जगह बनाओ
तो कुछ' बात बने
दिये जलाओ कि
कुछ तिमिर हटे 
हमने सदियों से उठा रखे है
परंपरा के पुस्प
उन्हे ताजगी सा महकाओ
तो कोई राग चले
दिये जलाओ कि कुछ
तिमिर हटे
.....

दीपावली कि शुभ कामनाएँ ..
      -कुशवंश

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (02-11-2013) "दीवाली के दीप जले" चर्चामंच : चर्चा अंक - 1417” पर होगी.
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
    सादर...!

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  2. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार भाई जी-

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  3. बहुत सुन्दर लिखा है कुशवंश जी . दीवाली की हार्दिक शुभकामनायें .

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  4. खुबसूरत अभिवयक्ति...... शुभ दीपावली

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  5. उम्दा प्रस्तुति |
    आपको सपरिवार दिवाली की शुभकामनाएं |

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  6. बहुत ही सुन्दर रचना..
    दीपावली कि हार्दिक शुभकामनाएँ
    :-)

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  7. काश
    जला पाती एक दीप ऐसा
    जो सबका विवेक हो जाता रौशन
    और
    सार्थकता पा जाता दीपोत्सव

    दीपपर्व सभी के लिये मंगलमय हो ……

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  8. दीप पर्व आपको सपरिवार शुभ हो !

    कल 03/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  9. दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  10. बहुत शुभ लगती सी अन्धेरा हटाने को प्रयासरत कामना .....

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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