महेश कुशवंश

10 अगस्त 2013

चाँद निकलते देखा


खुली आँखों से 
कल
चाँद निकलते देखा 
छिपे  अरमानों को
कल 
करवट बदलते देखा
घुप्प अन्धेरा था 
दिखता  न था 
हाँथ को हाथ 
तुम्हारे  चेहरे  को
मेरा
चेहरा पढ़ते देखा
कवितायें ही कवितायें 
बिखरने लगीं 
चाँद सितारों की तरह 
खूबियां पलने लगीं 
कई 
दिलकश नजारों की तरह
भूले बिसरे कई जमाने 
याद आने लगे 
कानों के पास कई भौरे 
गुनगुनाने लगे
सोचता हूँ 
क्या 
उमंगों का मौसम है 
अबकी श्रावण में 
लगता है 
दिलभर  दम है....


7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ......बहुत दम है .........?

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति आभार क्या ऐसे ही होती है ईद मुबारक ? आप भी पूछें सन्नो व् राजेश को फाँसी की सजा मिलनी चाहिए.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN,

    जवाब देंहटाएं
  4. चाँद तारों के साथ, यादों की बारात -बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
    latest post नेताजी सुनिए !!!
    latest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बढ़िया भावात्मक अभिव्यक्ति के लिए धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  6. अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने इस अभिव्‍यक्ति में

    जवाब देंहटाएं

आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

हिंदी में