तुम्हे हिंदी नहीं आती क्या ?
तुम्हारा ये अंग्रेजीपन
हमें सोचने पर मजबूर कर देता है
तुम किस देश के हो
भारतवर्ष की रास्ट्र भाषा तो हिन्दी है
क्या तुम भारतीय नहीं हो
और अगर हो तो
तो तुम्हे संस्कृति का भान नहीं है
मात्र भाषा क्या होती है
शायद इस तथ्य से अन्विज्ञ हो
तुम्हारे आसपास जब
कोई तुम्हारी भाषा में जवाब नहीं देता
तुम्हे नहीं लगता
किस देश के हो तुम
कहाँ छूट गयी तुम्हारी धरती
तुम्हारे लोग
और मुलम्मा चढी अंग्रेजियत के साथ
रह गए तुम
निपट अकेले
तुम्हे नहीं लगता
किस देश के हो तुम
कहाँ छूट गयी तुम्हारी धरती
तुम्हारे लोग
और मुलम्मा चढी अंग्रेजियत के साथ
रह गए तुम
निपट अकेले
शायद नहीं भूले होगे तुम
माँ की गोद
लहलहाते खेतो में अठखेलिया करते
सरसों के पीले फूल
नंग -धडंग, वो कितने सारे दोस्त
पेड़ों पे चढ़कर तालाब में कूदते
उन्ही में कोई एक
तुम भी तो थे
तुम भी तो थे
फिर कब भूल गए तुम
अपनी माटी की सुगंध
गेहूं की बाली
गन्ने के खेत
गाव की कच्ची सड़क और पुलिया
डूबता सूरज
बैलों के गले में पडी घंटियों की आवाज़
बैलों के गले में पडी घंटियों की आवाज़
ढपली , मजीरे और
आल्हा गाते बब्बू भैया
आल्हा गाते बब्बू भैया
जो शायद तुम्हारी भाषा में नहीं थे
खालिश देसी भाषा में थे
तुम्हारी मात्रभाषा में थे
....
मेरे प्यारे मित्र
जैसे माँ सिर्फ माँ ही होती है
वैसी ही होती है माँ की भाषा
और माँ किस सम्मान की हक़दार है
तुम जानते हो शायद ?
कोई बेटा
इतना भी नालायक नहीं होता .
-कुश्वंश
वैसी ही होती है माँ की भाषा
और माँ किस सम्मान की हक़दार है
तुम जानते हो शायद ?
कोई बेटा
इतना भी नालायक नहीं होता .
-कुश्वंश
सार्थक चिंतन से ओतप्रोत रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएं------
क्यों डराती है पुलिस ?
घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।
हकीकत बयान करती यह पोस्ट अच्छी लगी...शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंsarthak aur satik chintan
जवाब देंहटाएंबेहद सार्थक व सटीक लेखन ...आभार ।
जवाब देंहटाएंkab bhul gaye tum apni maa kee bhasha ... is ek prashn mein sari vedna hai
जवाब देंहटाएंबेहद सार्थक व सटीक लेख| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंमेरे प्यारे मित्र
जवाब देंहटाएंजैसे माँ सिर्फ माँ ही होती है
वैसी ही होती है माँ की भाषा ....
बेहद सार्थक व भावपूर्ण रचना ...आभार
बहुत भावपूर्ण और सटीक रचना |
जवाब देंहटाएंबधाई |
आशा
बहुत ही सुन्दर और सार्थक सन्देश देती हुई रचना ......
जवाब देंहटाएंदिल को बहुत गहराई से छूती है आपकी भावपूर्ण अभिव्यक्ति.बहुत बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने...
जवाब देंहटाएंमाँ की भाषा को जो भूले,उसका तिरस्कार करे, वह कृतघ्न है, कपूत है...
हमारी राष्ट्रभाषा के प्रति सम्मान ज़रूरी है । फैशन के शिकार आधुनिक युवा इस बात को नहीं समझते ।
जवाब देंहटाएंसही समझाया है आपने ।
बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक लेखन ...
जवाब देंहटाएंनिपट अकेले
जवाब देंहटाएंशायद नहीं भूले होगे तुम
माँ की गोद
लहलहाते खेतो में अठखेलिया करते
सरसों के पीले फूल
नंग -धडंग, वो कितने सारे दोस्त
पेड़ों पे चढ़कर तालाब में कूदते
उन्ही में कोई एक
तुम भी तो थे .........................bahut khub....stay ko liye huye
बहुत खूब कुश्वंश भाई ! शुभकामनायें आपको !
जवाब देंहटाएंचलिए हम साथ मिलकर दुख मना लेते हैं। भावमयी कविता।
जवाब देंहटाएंbahut achchhi kavita. sandeshprad rachna ke liye badhai.
जवाब देंहटाएंमाँ समान स्नेह और पहचान देने वाली हमारी राष्ट्र भाषा के लिए बहुत उत्कृष्ट कविता लिखी है आपने। बहुत सकीक प्रश्न उपस्थित किये हैं आपने, जो आत्मा को उद्वेलित करने में पूर्णतय सक्षम है। हिंदी दिवस की बहुत बहुत शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंकठिन परिस्थियों में एक मित्र और बड़े भाई का जो स्नेह दिया है आपने, उसके लिए आभार व्यक्त करने को शब्द कम पड़ रहे हैं। कृतज्ञ हूँ।
जवाब देंहटाएंबहुत उत्कृष्ट रचना.आईये,संकल्प लें-हिंदी पर गर्व करेंगे और कभी हीनता महसूस नहीं करेंगे.जय हिंदी-जय देव-नागरी.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ...हिंदी ने सदैव गौरवान्वित किया है हमें और गर्व है हमे इसके हमारी मातृभाषा होने पर ....
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