महेश कुशवंश

15 फ़रवरी 2013

खिड़की बंद



वर्षा  की बूंदे
खिड़की खोलते ही
फुहारे सा भिगो देती हैं
कडकडाती बिजली
अँधेरे में खीच देती है
चमकती रेखा
दूर तक
अँधेरे में गूंजती है 
झींगुरों की आवाज़
आसमान में है
गहरा अन्धेरा
मैं खिड़की बंद करना चाहता हूँ
अँधेरे से डरकर
सामने फ्लैट की खुली खिड़कियाँ
मेरे मन की खिड़की खोल देती है
एक खिड़की में  खडी है
वो लडकी
जिसकी आये दिन लगती है नुमाइश
और दूसरी में
उसका पिता
जिसके कानों में गूंजती रहती है हमेशा बराती बैंड   की आवाज़
मेरी पराशक्ति
जो ले सकती है किसी के भी मन की थाह
मुझे उस पिता तक पहुचाती है
...
कितने कमीने है लोग
सब कुछ तय हो जाने के बाद भी
मुकर जाते है
कुछ और की चाह में
मैं
एक बेटी का पति न तलाश सका
और वो बगली  फ्लैट वाले
पांच लड़कियों को विदा कर
पार्टियों में मस्त है
ईर्ष्या में काले हो रहे दिल का क्या करैं
कौन सा सुकून तलासे .
उधर दूसरी खिड़की में
मैं लडकी के मन की थाह लेने लगता हूँ
वो सामने वाले अंकल  कितने  अमीर हैं
उनका बेटा छोटे से ही
चला रहा है बाइक ..
वो बदसूरत सी अनटी
जब बनठन के निकलती है
तो मेरी खूबसूरत मम्मी से
कही अच्छी लगती है
काश .......
मैं उनकी बेटी होती ..
या फिर उनके घर
मिल जाती मुझे ससुराल ..
...
तभी कडकडाती है बिजली ..
और होने लगती है
मूसलाधार बारिश
मैं देखता हूँ एक पूरा परिवार
सब्जी के ठेले पर
पालीथीन  ओढ़े
बारिश से बचने की कोशिश करते हुए ..
पानी की बौछारें
घर में घुसने लगती  हैं
मैं  खिड़की बंद कर लेता हूँ ..
घर की भी  और
मन की भी ...

19 टिप्‍पणियां:

  1. हत भाग्य इस देश का इसकी गरीब बेटियों का जहाँ दोहरी मानसिकता वाले लोग घूमते रहते हैं दूसरी और दहेज के लोलुप भेड़िये ,
    सब की बेटियाँ हैं पर अपनी बेटी के लिए अलग सोच दूसरी के लिए अलग सोच दिल फटता है ये सब देख् कर पर मेरा कहना है कि हमें जाग्रति की खिड़की खोलनी चाहिए बहुत अच्छे मुद्दे पर बेहतरीन शब्द दिए हैं आपने वाह बहुत अच्छा लिखा बधाई आपको कुश्वंश जी

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  2. अपनी दुनिया से हट कर एक सच ये भी है जो आपने लिखा है

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  3. घर में घुसने लगती हैं
    मैं खिड़की बंद कर लेता हूँ ..
    घर की भी और
    मन की भी ...

    .........बेहतरीन रचना देने के लिए आभार

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  4. एक ही परिस्थिति ....पर सोच अलग अलग ... सच को कहती अच्छी रचना

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  5. अपनी सोच और सामने की सोच में बहुत फर्क होता है

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  6. जाकी रही भावना जैसी-
    सादर नमन ।।

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  7. मैं खिड़की बंद कर लेता हूँ ..
    घर की भी और
    मन की भी ...

    अलग अलग दुनिया के रूप ...दुख तो देते ही हैं ...
    संवेदनशील रचना ...!!
    शुभकामनायें ।

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  8. एक खिड़की से कितनी बड़ी दुनिया देख ली आपने..सुन्दर प्रस्तुति...

    एक खिड़की से कितनी बड़ी दुनिया देख ली आपने..सुन्दर प्रस्तुति...

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  9. कोमल भावो की अभिवयक्ति......

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  10. सुन्दर रचना | अतीव मनमोहक एवं विचारणीय.....!

    Tamasha-E-Zindagi
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  11. संवदनशील मन की एक रचना ..
    बधाई !

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  12. सम्वेदना का झर झर बहता निर्झर क्या क्या न कह गया....बधाई

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  13. दुनिया के कई रूप... कई बार लगता है की सभी दरवाज़े बंद कर पूरी दुनिया से दूर हुआ जा सकता है, पर बंद दरवाज़े में भी अपनी आत्मा... बहुत अच्छी रचना, बधाई.

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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