महेश कुशवंश

30 जून 2012

रास्ते कब कहाँ ... आसान होते हैं











रास्ते कब 
कहाँ 
आसान होते हैं
भरे पड़े है जंगल 
कंक्रीटों के 
मगर सब फूस के मकान होते हैं 

पटी पडी हैं गलियां भी 
सड़कें भी , कंकडों से 
किसके तलुए हैं 
जो 
लहुलुहान होते हैं 

दिल में 
जितनी भी  
बिछी हो 
मखमली यांदें 
हसीं सपनों का  
बहकता सावन 
कोयल सा उड़ता 
तरंगित मन 
तैरते संगीत में सब 
भैरवी तान होते है 
रास्ते कब कहाँ 
आसान होते है 

-कुशवंश 



11 टिप्‍पणियां:

  1. भरे पड़े है जंगल
    कंक्रीटों के
    मगर सब फूस के मकान होते हैं

    बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया विचार ।

    बधाई ।।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह.....

    बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति...

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. सच कहती सुन्दर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  6. सही कहा आपने...
    बहुत ही बेहतरीन रचना...
    :-)

    जवाब देंहटाएं
  7. सच मे जीवन की राह कठिन है ...बहुत सुंदरता से कही मन की बात ....शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  8. पटी पडी हैं गलियां भी
    सड़कें भी , कंकडों से
    किसके तलुए हैं
    जो
    लहुलुहान होते हैं...

    Very impressive lines...

    .

    जवाब देंहटाएं

आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

हिंदी में